Friday, December 9, 2022

Kantara Varaaharupam Prelude Notes

Pa Sa Re# Sa (3)

Paa! pa dha ma pa ri ma
Paa! pa dha ma pa ma

Paa! pa dha ma pa ri ma
Paa! pa dha ma pa ma

Dha! dha sa dha-sa saa rri
Saa Sa ma ri ri sa 

Dha! dha sa dha-sa saa rri
Saa Sa ma ri ri sa 

Wednesday, August 17, 2022

Expensive Poverty

अंग्रेजी में एक शब्द है "एक्सपेंसिव-पावर्टी"

इसका मतलब होता है.... "महंगी- गरीबी" अर्थात...
गरीब दिखने के लिए आपको बहुत खर्चा करना पड़ता है। गांधीजी की गरीबी ऐसी ही थी।

एक बार सरोजनी नायडू ने उनको मज़ाक में कहा भी था कि “आप को गरीब रखना हमें बहुत महंगा पड़ता है !!”

ऐसा क्यों ?......

गांधी जी जब भी तीसरे दर्जे में रेल सफर करते थे तो वह सामान्य तीसरा दर्जा नहीं होता था।

अंग्रेज नहीं चाहते थे की गांधी जी की खराब हालातों में, भीड़ में यात्रा करती हुई तस्वीरें अखबारों में छपे उनको पीड़ित (विक्टिम) कार्ड का लाभ मिले।

इसलिए जब भी वह रेल यात्रा करते थे तो उनको विशेष ट्रेन दी जाती थी जिसमें कुल 3 डिब्बे होते थे.....
जो केवल गांधी जी और उनके साथियों के लिए होते थे, क्योंकि हर स्टेशन पर लोग उनसे मिलने आते थे।

इस सब का खर्चा बाद में गांधीजी के ट्रस्ट की ओर से अंग्रेज सरकार को दे दिया जाता था।

इसीलिए एक बार मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था की .....
“जितने पैसो में मैं प्रथम श्रेणी यात्रा करता हूँ उस से कई गुना में गांधीजी तृतीय श्रेणी की यात्रा करते हैं।”

गांधीजी ने प्रण लिया था कि वे केवल बकरी का दूध पिएंगे। बकरी का दूध आज भी महंगा मिलता है, तब भी महंगा ही था... अपने आश्रम में तो बकरी पाल सकते थे, पर गांधी जी तो बहुत घूमते थे।ज़रूरी नही की हर जगह बकरी का दूध आसानी से मिलता ही हो। इस बात का वर्णन स्वयं गांधीजी की पुस्तकों में है, कैसे लंदन में बकरी का दूध ढूंढा जाता था, महंगे दामों में खरीदा जाता था क्योंकि गांधी जी गरीब थे, वो सिर्फ बकरी का दूध ही पीते थे...

ये बात अलग है कि खुशवंत सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि...

गांधी जी ने दूध के लिए जो बकरियां पाली थी, उनको नित्य साबुन से नहलाया जाता था, उनको प्रोटीन खिलाया जाता था। उनपर 20 रुपये प्रतिदिन का खर्च होता था।

90 साल पहले 20 रुपये मतलब आज हज़ारों रुपये...

बाकी खर्च का तो ऐसा है कि गांधीजी अपने साथ एक दानपात्र रखते थे जिसमें वह सभी से कुछ न कुछ धनराशि डालने का अनुरोध करते थे।

इसके अलावा कई उद्योगपति उनके मित्र उनको चंदा देते थे।

उनका एक न्यास (ट्रस्ट) था जो गांधी के नाम पर चंदा एकत्र करता था।

उनके 75 वें जन्मदिन पर 75 लाख रुपए का चंदा जमा करने का लक्ष्य था, पर एक करोड़ से ज्यादा जमा हुए।

सोने के भाव के हिसाब से तुलना करें तो आज के 650 करोड़ रुपये हुए।

गांधी उतने गरीब भी नहीं थे, जितना हमको घुट्टी पिला पिलाकर रटाया गया है।


Courtesy: https://mbasic.facebook.com/newstonationcom/photos/a.1905457426392497/3288162088122017/?type=3&refid=52&__tn__=EH-R